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Diwali, the festival of lights, is not just about celebration but also about invoking prosperity, peace, and happiness into our lives. This year, aligning your Diwali festivities with Vastu Shastra can significantly enhance the positive energy in your home while attracting the blessings of Goddess Lakshmi. By understanding the principles of Vastu, you can create an environment that nurtures joy and abundance, ensuring that your Diwali celebrations resonate with harmony and auspiciousness.
In this blog post, we will delve into the significance of Vastu for Diwali, helping you comprehend how proper alignment and placement can elevate your festivities. We’ll also explore the ideal muhurat for Lakshmi Poojan, guided by Vastu principles, and share essential tips to maximize positivity during this important occasion. Prepare to make this Diwali not only a time of joyful celebration but also a spiritually enriching experience that sets a positive tone for the coming year.
Understanding the significance of Vastu for Diwali celebrations
During Diwali, the Festival of Lights, adhering to Vastu principles becomes even more significant as families prepare to invite Goddess Lakshmi into their homes. Following these guidelines can amplify the festive spirit and ensure that the energies flowing through your abode resonate with happiness and abundance.
Key elements such as the positioning of diyas, rangoli designs, and the arrangement of prayer altars can significantly influence the effectiveness of your rituals. Understanding the significance of each direction—such as placing idols in the right corner or ensuring easy access to natural light—can transform your Lakshmi Poojan into a more meaningful experience.
Ideal muhurat for Lakshmi Pujan as per Vastu
Choosing the right muhurat for Lakshmi Poojan is essential to maximize the blessings of Goddess Lakshmi. According to Vastu Shastra, the best time for performing this sacred worship aligns with the moon's waxing phase. Diwali falls during the month of Kartik, which is highly auspicious. Traditionally, it is advisable to perform Lakshmi Poojan on the night of Diwali, preferably during Pradosh Kaal, which occurs just after sunset. During this time, the energies around you are heightened, making it an ideal moment to invite prosperity and abundance into your home.
By selecting the right muhurat, you not only honor your traditions but also create a conducive atmosphere for the Divine blessings of Lakshmi to flow into your life, enhancing the overall festive spirit of Diwali.
Lakshmi Puja: Friday, November 1, 2024
Lakshmi Pujan Muhurat - 05:36 PM to 06:16 PM
(Duration - 00 Hours 41 Mins)
Pradosh Kaal - 05:36 PM to 08:11 PM
Vrishabha Kaal - 06:20 PM to 08:15 PM
Amavasya Tithi Begins - 03:52 PM on Oct 31, 2024
Amavasya Tithi Ends - 06:16 PM on Nov 01, 2024
Panchang for Lakshmi Pujan
Lakshmi Pujan Muhurat in Other Cities
06:57 PM to 08:36 PM, Oct 31 - Mumbai
06:54 PM to 08:33 PM, Oct 31 - Pune
05:36 PM to 06:16 PM - New Delhi
05:42 PM to 06:16 PM - Chennai
05:44 PM to 06:16 PM - Jaipur
05:44 PM to 06:16 PM - Hyderabad
05:37 PM to 06:16 PM - Gurgaon
05:35 PM to 06:16 PM - Chandigarh
05:45 PM to 06:16 PM - Kolkata
06:47 PM to 08:21 PM, Oct 31 - Bengaluru
06:52 PM to 08:35 PM, Oct 31 - Ahmedabad
05:35 PM to 06:16 PM - Noida
Mahanishita Kaal - 11:39 PM to 12:31 AM, Nov 02
Simha Kaal - 12:50 AM to 03:07 AM, Nov 02
Amavasya Tithi doesn't overlap with Nishita
Amavasya Tithi Begins - 03:52 PM on Oct 31, 2024
Amavasya Tithi Ends - 06:16 PM on Nov 01, 2024
चौघड़िया पूजा मुहूर्त
Morning Muhurat (Chara, Labha, Amrita) - 06:33 AM to 10:42 AM
Afternoon Muhurat (Chara) - 04:13 PM to 05:36 PM
Afternoon Muhurat (Shubha) - 12:04 PM to 01:27 PM
Choti Diwali 2024: दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन घरों में यमराज की पूजा की जाती है। छोटी दिवाली पर शाम के वक्त घर में दीपक लेकर घूमने के बाद उसे बाहर मुख्य दरवाजे पर रख दिया जाता है। इसे यम का दीपक कहते हैं। मान्यता है कि यमराज के लिए तेल का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है। छोटी दिवाली को सौन्दर्य प्राप्ति और आयु प्राप्ति का दिन भी माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की उपासना भी की जाती है, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था।
Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurat: दीपावली का त्योहार इस साल 1 नवंबर के दिन मनाया जा रहा है। दिवाली के दिन शाम के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग दीपावली के दिन पूजन करते हैं, उनके घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दिवाली वह दिन है, जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या के राजा के रूप में वापस आए थे। इस दिन नागरिकों ने अपने राजा की वापसी पर खुशी मनाई और तब से इस तरह दिवाली का पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन मिट्टी के दीयों और मोमबत्तियों को जलाते है।
इस दिन सभी लोग अपने घर के द्वार को गेंदे के फूल और अशोक, आम व केले के पत्तों से सजाते हैं ऐसा करना शुभ माना जाता है।
दिवाली में लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में होती है, जो सूर्यास्त के बाद शुरू होता है। महानिशिता काल में तांत्रिक और पंडित लोग पूजा करते है, ये वे लोग होते है, जिन्हें लक्ष्मी पूजा के बारे में अच्छे से जानकारी होती है। आम इन्सान लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में ही करते है। प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न में पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है। कहते है, स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी घर में ही स्थिर रहती है, कहीं नहीं जाती है। इसलिए ये लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे अच्छा समय है। वृषभ काल ही स्थिर लग्न होता है, जो दिवाली के त्यौहार में प्रदोष काल में ही आता है। अगर किसी कारणवश वृषभ काल में पूजा नहीं कर पाते है, तो इस दिन के किसी भी लग्न काल में पूजा कर सकते है।
1. वृश्चिक लग्न – यह दिवाली के दिन की सुबह का समय होता है। वृश्चिक लग्न में मंदिर, हॉस्पिटल, होटल्स, स्कूल, कॉलेज में पूजा होती है. राजनैतिक, टीवी फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही लक्ष्मी पूजा करते है।
2. कुम्भ लग्न – यह दिवाली के दिन दोपहर का समय होता है। कुम्भ लग्न में वे लोग पूजा करते है, जो बीमार होते है, जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही होती है, जिनको व्यापार में बड़ी हानि होती है।
3. वृषभ लग्न – यह दिवाली के दिन शाम का समय होता है। यह लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय होता है।
4. सिंह लग्न – यह दिवाली की मध्य रात्रि का समय होता है। संत, तांत्रिक लोग इस दौरान लक्ष्मी पूजा करते है।
रोली, मौली, पान, सुपारी, अक्षत, धूप, घी का दीपक, तेल का दीपक, खील, बताशे, श्रीयंत्र, शंख , घंटी, चंदन, जलपात्र, कलश, लक्ष्मी-गणेश-सरस्वतीजी का चित्र, पंचामृत, गंगाजल, सिन्दूर, नैवेद्य, इत्र, जनेऊ, कमल का पुष्प, वस्त्र, कुमकुम, पुष्पमाला, फल, कर्पूर, नारियल, इलायची, दूर्वा
दिवाली पूजन विधि (Diwali Pujan Method)
भागवत और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन से कार्तिक महीने की अमावस्या पर लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं। वहीं, वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा की परंपरा है। स्कंद और पद्म पुराण का कहना है कि इस दिन दीप दान करना चाहिए, इससे पाप खत्म हो जाते हैं।
दीपावली पर दीपक पूजन करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन लक्ष्मी पूजा से पहले कलश, भगवान गणेश, विष्णु, इंद्र, कुबेर और देवी सरस्वती की पूजा की परंपरा है। ज्योतिषियों का कहना है कि इस बार दिवाली पर तुला राशि में चार ग्रहों के आ जाने से चतुर्ग्रही योग बन रहा है। इस दिन की गई पूजा का शुभ फल जल्दी ही मिलेगा।
दिवाली पर ऐसे करें मां लक्ष्मी का पूजन
दिवाली का पर्व जीवन में नई उमंग, उत्साह के संचार का त्यौहार है। घनघोर अंधेरे को चीरती एक दीये की रोशनी की ताकत हमें जीवन में इसी तरह आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। दिवाली की रात में मां लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व होता है। शुभ मुहूर्त पर मां लक्ष्मी का पूजन जीवन को खुशहाली और धनसंपदा से भर देता है।
दिवाली पर मां लक्ष्मी के पूजन के लिए सबसे पहले पूजा स्थल की अच्छी तरह से साफ-सफाईकरना चाहिए। पूरे घर की पवित्रता को बनाए रखने के लिए गंगाजल से छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ ही मां लक्ष्मी के आगमन के लिए पहले से ही घर के बाहर रंगोली सजा देना चाहिए।
अब पूजा स्थल पर एक चौकी सजाएं और उस पर लाल कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा या फिर तस्वीर को रख दें। चौकी पर जल से भरा एक कलश जरूर रखें। इसके बाद मां लक्ष्मी, गणेश जीकी मूर्तियों/तस्वीरों पर तिलक लगाकर दीप जलाएं। इसके बाद अक्षत, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल, फल मां लक्ष्मी के चरणों में अर्पित करें। इसके बाद कुबेर देवता, भगवान विष्णु, मां काली और मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करें।
घर में मौजूद सभी सदस्यों को मां लक्ष्मी का पूजन एकत्रित होकर करना चाहिए। महालक्ष्मी पूजन के बाद घर की तिजोरी या प्रतिष्ठान की तिजोरी का पूजन करें। बहीखाता और व्यापारिक उपरकरण का भी पूजन करें। पूजन के बाद सभी को मीठा प्रसाद और जरूरतमंद को दक्षिणा दें।
देवी लक्ष्मी व श्रीगणेश की पूजा
- दिवाली पर घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें एवं स्वयं भी स्नान आदि कर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शाम के समय शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश की पूजा करें।
- दीपावली पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में कुछ रुपए रखें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें।
- सबसे पहले पूर्व या उत्तर की मुंह करके अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
- इसके बाद हाथ में जल और चावल लेकर पूजा का संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार बोलें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
- ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें। पूजा से पहले नई प्रतिमा की इस विधि से प्राण-प्रतिष्ठा करें। बाएं हाथ में चावल लेकर इस मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
- सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का) पूजन करें। इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
- ॐ महालक्ष्म्यै नम: - इस नाम मंत्र से भी पूजा की जा सकती है। विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-
सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।
- प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें। पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, नमम। यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ें।
श्रीमहाकाली (दवात) पूजन
- स्याहीयुक्त दवात (स्याही की बोतल) को महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
ॐ श्रीमहाकाल्यै नम:
- इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली की पूजा करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक प्रणाम करें-
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये।।
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।
लेखनी पूजन
- लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
लोकानां च हितार्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।
ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम:
- इस नाममंत्र द्वारा गंध, फूल, चावल आदि से पूजा कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।
बहीखाता पूजन
- बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि अर्पित कर पूजा करें।
कुबेर पूजन
- तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
- आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।
तुला (तराजू) पूजन
- सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
- ध्यान के बाद- ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:
इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन
- एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम:इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।
- दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें।
मां लक्ष्मी की आरती
आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल तथा फूलों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारजनों के साथ घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें|
- दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें-
ॐ या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।
- ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
- पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु। यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।
- इसके बाद चावल लेकर श्रीगणेश व महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं पर चावल छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।
इस प्रकार दीपावली पर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
Essential Vastu tips to enhance positivity during Diwali
During Diwali, enhancing the positive energy in your home plays a crucial role in ensuring a prosperous and joyful celebration.
Following these essential Vastu tips can significantly enhance the auspiciousness of your Diwali festivities.