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पितृ पक्ष में हर वयस्क व्यक्ति को अपने पितरों के प्रति दान पुण्य करते हुए उनके प्रति कर्तज्ञता का भाव अवश्य ही रखना चाहिए । यह हम सभी का कर्तव्य है कि यदि हमारे पिता जीवित है और अज्ञानता वश वह अपने पितरों के लिए सही तरीके से तर्पण श्राद्ध आदि नहीं कर पा रहे है तो हम उन्हें इसके बारे में अवश्य ही बताएं , जिससे उन्हें या परिवार के बाकि सदस्यों को पितृ दोष का भागी ना बनना पड़े ।
पितृ पक्ष में श्राद्ध में गाय के दूध, दही और घी का प्रयोग ही करना चाहिए भैंस का नही । तर्पण हमें सुबह सवेरे ही करना चाहिए और तर्पण से पहले कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए ।
तर्पण, श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन में चाँदी के बर्तनो का उपयोग करना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि चांदी भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई हैं। शास्त्रों के अनुसार तर्पण में चाँदी के बर्तन से जल देने पर पितरों को अक्षय तृप्ति की प्राप्ति होती है और यदि उनके पिंडदान और ब्राह्मण भोजन में भी चाँदी के बर्तनो का उपयोग किया जाय तो वह अपने वंशजो से अत्यंत प्रसन्न हो जाते है और उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । सोने के बर्तनो से तर्पण करने से भी महान पुण्य की प्राप्ति होती है । सोने और चाँदी के बर्तनो के अभाव में ताम्बे और काँसे के बर्तनो का भी प्रयोग किया जा सकता है लेकिन तर्पण और श्राद्ध में लोहे के बर्तनो का प्रयोग बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।
श्राद पक्ष में श्राद्ध वाले दिन बहुत से लोग पंडितों को भोजन कराने की जगह मंदिर या अनाथालय में भोजन भिजवा देते है जो सर्वथा गलत है । शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध वाले दिन पितृ साक्षात अपने घर में ब्राह्मण के रूप में भोजन ग्रहण करने आते है और उन्हें इस दिन का पूरे वर्ष बहुत ही बेसब्री से इंतज़ार रहता है और जब वह देखते है कि उन्हें घर में भोजन कराने की जगह भोजन को घर से बाहर भेजा जा रहा है तो वह बहुत ही कष्ट का अनुभव करते है। इसलिए यह सदैव ध्यान में रखिये कि आपको ब्राह्मण को अपने घर में बुलाकर प्रेम और श्रद्धा से भोजन कराकर उनका आशीर्वाद अवश्य ही लेना चाहिए तभी आपके पितृ तृप्त होंगे ।
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनाना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बडे, दूध-घी से बने पकवान, चावल, खीर, बेल पर लगने वाली मौसमी सब्जीयाँ जैसे- लौकी, तोरई, भिण्डी, सीताफल, कच्चे केले की सब्जी ही बनानी चाहिए ।
पितरों को खीर बहुत पसंद होती है इसलिए उनके श्राद्ध के दिन और प्रत्येक माह की अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन के साथ खिलाने पर महान पुण्य की प्राप्ति होती है, जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।
आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियाँ पितरो के श्राद्ध के दिन नहीं बनाई जाती हैं। चना, मसूर, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
श्राद्ध के भोजन में बेसन का प्रयोग नहीं किया जाता है । पितरों के नित्य तर्पण में कुश, काले तिल, गाय का दूध, गंगाजल, तुलसी और दूर्वा का अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए । शास्त्रों के अनुसार कुश तथा काला तिल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं । गाय का दूध और गंगाजल का प्रयोग श्राद्ध के कर्मफल को कई गुना तक बढ़ा देता है। तुलसी और दूर्वा दोनों ही बहुत ही पवित्र मानी जाती है अत: इसके प्रयोग से पितृ अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
राहुकाल में तर्पण, श्राद्ध वर्जित है अत: इस समय में उपरोक्त कार्य नहीं करने चाहिए । श्राद्ध, पिंड दान करते समय साफ पीले या सफ़ेद वस्त्र ही धारण करें , काले , लाल, नीले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन गजछाया के ( मध्यान का समय ) दौरान किया जाये तो अति उत्तम है ! गजछाया दिन में 12 बजे से 2 बजे के मध्य रहती है । सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक कतई नही पहॅंचता है। यह सिर्फ रस्मअदायगी मात्र ही है ।
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले अग्नि को भाग समर्पित करना चाहिए, इससे ब्राह्मण द्वारा किया गया भोजन सीधे पितरों को मिलता है ,ब्रह्मराक्षस उसे दूषित नहीं कर पाते है । श्राद्ध में विषम 1, 3, 5 की संख्या में अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को बुलाकर श्रद्धा पूर्वक भोजन कराएं और भोजन के पश्चात दान दक्षिणा भी अवश्य ही दें । बिना दान दक्षिणा के श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है ।
पितृ पक्ष में श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन में कुश के आसान का ही प्रयोग करना चाहिए। अतिरिक्त रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, के आसन का भी प्रयोग कर सकते है लेकिन कुश के आसान को पितरों के निमित कर्म करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। श्राद्ध में केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन करना निषेध है। अत: इनका भूल कर भी प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
( यदि आर्थिक संकट हो , सामर्थ्य ना हो तो पितृ गाय को मात्र घास देने से भी संतुष्ट हो जाते है ) पितरों को अपने लिए श्रद्धा चाहिए । श्राद्ध वाले दिन श्राद्ध वाले दिन जो व्यक्ति किसी और के घर का या बाहर का भोजन करता है उसे महा पाप लगता है और उसका श्राद्ध व्यर्थ हो जाता है ।
यदि श्राद्ध करते समय कोई याचक आ जाये तो उसे कतई भगाना नहीं चाहिए वरन उसे भी आदर पूर्वक श्राद्ध का खाना दे देना चाहिए । कहते है की यदि श्राद्ध कर्म के समय किसी याचक को निराश भेज दिया तो श्राद्ध का फल नहीं मिलता है । श्राद्ध वाले दिन श्राद्ध करने वाले जातक को पान का सेवन नहीं करना चाहिए ।
श्राद्ध में प्रतिदिन इस मन्त्र का उच्चारण अवश्य ही करें । इससे पितरों को परम संतुष्टि मिलती है और वह प्रसन्न होकर हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करते है ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा॥
श्राद्ध पक्ष में नित्य एक माला "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का जाप अवश्य ही करें ।
अगर श्राद्ध के दिन श्राद्ध करने वाले का जन्म दिवस हो तो उसे उस दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए । पूरे पितृ पक्ष में या श्राद्ध वाले दिन और पितृ अमवस्या के दिन भगवत गीता के सातवें अध्याय का पाठ अवश्य ही करना चाहिए और उसका फल अपने पितरों को अर्पित कर देना चाहिए ।
जानिए कौन है श्राद्ध करने का अधिकारी
शास्त्रों में लिखा है कि पितृ को नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है इसीलिए पुत्र को ही तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि का अधिकारी माना गया है। शायद यही कारण है कि हर मनुष्य अपनी मुक्ति और नरक से रक्षा करने के लिए पुत्र की अवश्य ही कामना करता है। और जो व्यक्ति जान बूझकर या अनजाने में अपने पिता और पितरों के निमित श्राद्ध में तर्पण, श्राद्ध, दान , पिंडदान आदि नहीं करता है उन्हें संतुष्ट नहीं करता है वह घोर नरक का भागी होता है ।
लेकिन यदि किसी के पुत्र नहीं है तो क्या होगा ? जानिए शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन अपने पितरों के श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है
* शास्त्रों के अनुसार पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए, तभी पिता को मोक्ष और उस पुत्र को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है ।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र के न होने पर उस व्यक्ति की पत्नी अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र और पत्नी के न होने पर सगा भाई और यदि वह भी नहीं है तो संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
* शास्त्रों के अनुसार एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करने का अधिकारी है।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र को श्राद्ध करना चाहिए ।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र किसी के भी न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
* शास्त्रों के अनुसार कोई अपनी पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब उसका कोई पुत्र न हो।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि इन सब के ना होने पर गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।
* शास्त्रों के अनुसार किसी के भी ना होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।
नोट:- यदि घर का बड़ा लड़का अपने पिता और पूर्वजो का श्राद्ध नहीं करता है और उसके कई पुत्र है तो किसी अन्य पुत्र को यह दायित्व अवश्य ही संभाल लेना चाहिए ।
पितृ पक्ष के प्रत्येक दिन के श्राद्ध
पितृ पक्ष का हिन्दू धर्म तथा हिन्दू संस्कृति में बड़ा महत्व है। श्रद्धापूर्वक पित्तरों के लिये किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार जो पित्तरों के नाम पर श्राद्ध तथा पिण्डदान नहीं करता है वह हिन्दु नहीं माना जा सकता है। हिन्दु शास्त्रों के अनुसार मृत्यु होने पर जीवात्मा चन्द्रलोक की तरफ जाती है तथा ऊँची उठकर पितृलोक में पहुँचती है इन मृतात्मओं को शक्ति प्रदान करने के लिये, उन्हें मोक्ष प्रदान करवाने के लिए उन्हें तृप्त, संतुष्ट करने के लिए तर्पण ,पिण्डदान और श्राद्ध किया जाता है।
अश्विन कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू माना जाता है हालाँकि कुछ लोग इसके अगले दिन से भी श्राद्ध पक्ष मानते है । इस पूर्णिमा को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा कहा जाता हैं। मान्यताओं के अनुसार जिस भी व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन होती हैं उनका श्राद्ध पूर्ण श्रद्धा से इसी दिन किया जाना चाहिए ।
पूर्णिमा के बाद की पहली तिथि अर्थात प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध पुराणो के अनुसार नाना-नानी और ननिहाल पक्ष के पितरों का श्राद्ध करने के लिए सबसे उत्तम माना गया है। अगर नाना पक्ष के कुल में कोई न हो और आपको मृत्यु तिथी ज्ञात ना हो तो भी इस दिन ननिहाल पक्ष के लोगो का श्राद्ध करना चाहिए ।
श्राद्ध का दूसरा दिन अर्थात द्वितीय तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है,जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वितीय तिथि के दिन हुई हो , उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।
श्राद्ध के तीसरे दिन अर्थात तृतीय तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगो की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि को होती है। इस दिन को महाभरणी भी कहते हैं। भरणी श्राद्ध का बहुत ही महत्व है । भरणी श्राद्ध गया श्राद्ध के तुल्य माना जाता है क्योंकि भरणी नक्षत्र का स्वामी मृत्यु के देवता यमराज होते है। इसलिए इस दिन के श्राद्ध का महत्व पुराणों में अधिक मिलता है।
श्राद्ध के चौथे दिन अर्थात चतुर्थी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन होती है ।
श्राद्ध का पाँचवा दिन अर्थात पंचमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिनकी मृत्यु विवाह से पूर्व ही हो गयी हो। इसीलिए इसे कुंवारा श्राद्ध भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की पँचमी तिथि के दिन होती है उनका भी श्राद्ध इसी दिन किया जाता है ।
श्राद्ध के छठे दिन अर्थात षष्ठी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन हुई हो । इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता हैं।
श्राद्ध के सातवें दिन अर्थात सप्तमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन हुई हो ।
श्राद्ध के आठवें दिन अर्थात अष्टमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन हुई हो ।
श्राद्ध के नवें दिन अर्थात नवमी तिथि को उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन को बुढ़िया नवमी या मातृ नवमी भी कहते हैं। इस दिन माता का श्राद्ध किया जाता है। सुहागिनों का श्राद्ध भी नवमी को ही करना चाहिए । इस दिन दादी या परिवार की किसी अन्य महिलाओं का श्राद्ध भी किया जाता है।
श्राद्ध के दसवें दिन अर्थात दशमी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन हुई हो ।
श्राद्ध के ग्यारवहें दिन अर्थात एकादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध भी किया जाता है । इसे ग्यारस या एकदशी का श्राद्ध भी कहते है ।
श्राद्ध के बारहवें दिन अर्थात द्वादशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन हुई हो । इस दिन परिवार के वह पूर्वज जो सन्यास ले चुके हो उनका श्राद्ध करने का सबसे उत्तम दिन माना जाता है ।
श्राद्ध के तेरहवें दिन अर्थात त्रयोदशी तिथि के दिन उन व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन हुई हो । यदि परिवार में किसी भी बच्चे का आकस्मिक देहांत हुआ हो तो उसका श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है ।
श्राद्ध के चौदहवें दिन अर्थात चतुर्दशी तिथि में शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, हत्या, सर्पदंश, आत्महत्या आदि) हुई हो या जिनकी मृत्यु अस्त्र-शास्त्र के लगने से हुई हो ऐसे पितरों का श्राद्ध किया जाता है । इसे घात चतुर्दशी भी कहा जाता हैं।
अमावस्या तिथि में श्राद्ध करने से सभी पितृ शांत होते है। यदि श्राद्ध पक्ष में किसी का श्राद्ध करने से आप चूक गए हों, अथवा गलती से भूल गए हों तो इस दिन श्राद्ध किया जा सकता है। अमावस्या तिथि में पुण्य आत्मा प्राप्त करने वाले पूर्वजों की आत्मा के लिए श्राद्ध भी इसी तिथि में किया जाता है। यदि हमें अपने किसी परिजन की मृत्यु तिथि का ज्ञान नहीं है तो उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जा सकता है । इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा सर्व पितृ दोष अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन की अमावस्या पितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है ।
पितरों का श्राद्ध
वैसे तो पितृपक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध में नौ ब्राहमणें को भोजन कराना चाहिये लेकिन वर्तमान समय में यदि एक ब्राहमण को भी श्रृद्धापूर्वक आदर सहित भोजन कराया जाय तो वह भी पर्याप्त है। उस दिन उस ब्राहमण को ही पितृदेवता समझकर उनका स्वागत सत्कार करना चाहिये तथा उन्हे पूर्ण रूप से संतुष्ट करके ही स्वयं भोजन करना चाहिये। इस दिन ब्राहमणों को अतिरिक्त एक-एक ग्रास गाय, कौआ, कुत्ता तथा चीटियों के लिये भी निकालना चाहिये।
श्राद्ध का अर्थ ही श्रद्धा भाव से किया गया कर्म है यदि श्राद्धकर्ता निर्धन हो, ब्राहमण को भोजन ना भी करा पाये तो पित्तरों के नाम से गाय को हरा चारा ही डाल दे तथा श्रद्धा से पित्तरों से विनम्र निवेदन कर ले कि मेरे पास आपके लिये आदर श्रद्धा एवं भक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, आप मुझे क्षमा करके मुझ पर एवं मेरे परिवार पर कृपा करें तब भी पित्तर प्रसन्न हो जाते है।
कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।
हमारे पितृ मृत्यु के बाद जिस लोक में रहते है वह पितृ लोक कहलाता हैं। यह चांद के पास है इस लिए इसे सोम लोक भी कहा जाता है । पित्रों के एक दिन 30 मानव दिनों के समान होते हैं। एक महीने में एक बार मात्र अमावास्य पर जो उनके लिए दोपहर का खाने का समय है पितृ तर्पण करने से, उनके निमित ब्राह्मण भोजन कराने से, दान देने से उनको महान संतोष की प्राप्ति होती है वह पूर्ण रूप से तृप्त हो जाते है।
जिस दिन अपने पूर्वजो का श्राद्ध करना हो उस दिन श्राद्ध के आरम्भ और श्राद्ध की समाप्ति पर निम्न मन्त्र का जाप अवश्य ही करें ।
ll देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च l
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll
अर्थात हे समस्त देवताओं, पितरों, महयोगियों, स्वधा एवं स्वाहा आप सबको हम नमस्कार करते है । आप सभी शाश्वत फल प्रदान करने वाले है । इससे श्राद्ध करता को पितरों का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
श्राद्ध में प्रतिदिन इस मन्त्र का उच्चारण अवश्य ही करें । इससे पितरों को परम संतुष्टि मिलती है और वह प्रसन्न होकर हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करते है । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा॥
पितरों का श्राद्ध कर्म
श्राद्ध पक्ष में राहुकाल में तर्पण, श्राद्ध वर्जित है अत: इस समय में उपरोक्त कार्य नहीं करने चाहिए ।
श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन गजछाया के ( मध्यान का समय ) दौरान किया जाये तो अति उत्तम है ! गजछाया दिन में 12 बजे से 2 बजे के मध्य रहती है । सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक कतई नही पहॅंचता है। यह सिर्फ रस्मअदायगी मात्र ही है ।
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनाना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बडे, दूध-घी से बने पकवान, चावल, खीर, बेल पर लगने वाली मौसमी सब्जीयाँ जैसे- लौकी, तोरई, भिण्डी, सीताफल, कच्चे केले की सब्जी ही बनानी चाहिए । आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियाँ पितरो के श्राद्ध के दिन नहीं बनाई जाती हैं।
पितरों को खीर बहुत पसंद होती है इसलिए उनके श्राद्ध के दिन और प्रत्येक माह की अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन के साथ खिलाने पर महान पुण्य की प्राप्ति होती है, जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है । श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समय शास्त्रानुसार कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग उचित और कुछ को निषेध बताया गया है।
1- श्राद्ध में सात पदार्थ बहुत ही महत्वपूर्ण बताए गए हैं जैसे - गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल।
2- शास्त्रों के अनुसार, तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं, और श्राद्ध के पश्चात गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। ।
3 - श्राद्ध में भोजन में सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल का भी प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन लोहे अथवा स्टील के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए |
4 - रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। इसमें कुश के आसान को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है ।
5 - आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
6 - श्राद्ध में केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन करना निषेध है।
7 - चना, मसूर, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
8 - वृहत्पराशर में श्राद्ध की अवधि में मांस भक्षण, क्रोध, हिंसा, अनैतिक कार्य एवं स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध, मैथुन कार्य आदि का निषेध बताया गया है। कहते है की इस अवधि में मैथुन करने से पितरों को वीर्यपान करना पड़ता है जिससे उन्हें बेहद कष्ट मिलता है अत: पितृ पक्ष में व्यक्ति को सयंम अवश्य ही बरतना चाहिए ।
1. याद रखे घर के सभी बड़े बुजर्ग को हमेशा प्रेम, सम्मान, और पूर्ण अधिकार दिया जाय , घर के महत्वपूर्ण मसलों पर उनसे सलाह मशविरा करते हुए उनकी राय का भी पूर्ण आदर किया जाय ,प्रतिदिन उनका अभिवादन करते हुए उनका आशीर्वाद लेने, उन्हे पूर्ण रूप से प्रसन्न एवं संतुष्ट रखने से भी निश्चित रूप से पित्र दोष में लाभ मिलता है ।
2.अपने ज्ञात अज्ञात पूर्वजो के प्रति ईश्वर उपासना के बाद उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखने उनसे अपनी जाने अनजाने में की गयी भूलों की क्षमा माँगने से भी पित्र प्रसन्न होते है ।
3. सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है ।
4. सोमवती अमावस्या के दिन यदि कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ पर मीठा जल मिष्ठान एवं जनेऊ अर्पित करते हुये “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाएं नमः” मंत्र का जाप करते हुए कम से कम सात या 108 परिक्रमा करे तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा मांगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।
5.प्रत्येक अमावस्या को गाय को पांच फल भी खिलाने चाहिए।
6. अमावस्या को बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है।
7. प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है ।
8. पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन शिव लिंग पर जल चढ़ाकर महामृत्यूंजय का जाप करना चाहिए ।
9. माँ काली की नियमित उपासना से भी पितृ दोष में लाभ मिलता है।
10. आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हो घर में भोजन बनने पर सर्वप्रथम पित्तरों के नाम की खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है घर के मुखियां को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पित्तरों को नमन करते हुये कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दे।
11. पितरों के निमित घर में दीपक, अगरबत्ती को प्रात:काल पूजा के समय ऊँ पितृय नम: कम से कम 21 बार उच्चारण करें।
12. पशु-पक्षियों को खाना खिलायें।
13. श्री मद भागवत गीता का ग्यारहवां अध्याय का पाठ करें।
14.पित्र पक्ष अथवा अमावस्या के दिन पितरों को ध्यान करके सामर्थ्यनुसार ब्राह्मण पूजन के बाद गरीबों को दान करने से पितर खुश होते हैं। ब्राह्मण के माध्यम से पितृपक्ष में दिये हुऐ दान-पुण्य का फल दिवंगत पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आज के दिन पिंडदान, तिलांजली और ब्राह्मणों को पूर्ण श्रद्धा से भोजन कराने से जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होता है।
15. हिन्दु मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद भी स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसके लिए प्रसनचित होकर हव्य से देवताओं का, कव्य से पितृगणों का तथा अन्न द्वारा बंधुओं का भंडारा करें। इससे परिवार एवं सगे-सम्बन्धियों, मित्रों को भी विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशान्ति, वंश वृद्घि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, धन से बरकत न होना, सभी भौतिक सुखों के होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
16. शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, कला तिल चढाये । पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है ।
17. याद रखिए पूर्वजो के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने उन्हे पूर्ण रूप से संतुष्ट करने उनको प्रसन्न रखने वाले व्यक्ति पर हमेशा दैवी कृपा बनी रहती है....उसके कार्यों में कोई भी अवरोध नही होता है ..उसकी सर्वत्र जयजयकार होती है ।
18. "ओम् नमो भगवते वासुदेवाय" की एक माला का नित्य जाप करें ।
19. जब भी किसी तीर्थ पर जाएं तो अपने पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से उनका तर्पण अवश्य ही करें ।
20. पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष, विशेषकर पीपल लगाकर, उसकी पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने से भी पितृदोष समाप्त होता है ।
शास्त्रों के अनुसार यदपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि होती है मगरआश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी कही गई है। इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा सर्व पितृ दोष अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है।
महा का अर्थ होता है 'उत्सव का दिन' और आलय से अर्थ है 'घर' चूँकि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का पृथ्वी पर निवास माना गया है, इस समय में वे अपने घर अपने सम्बन्धियों के आस पास मंडराते रहते है, अत: अश्विन की अमावस्या पितरों के लिए उत्सव का दिन कहलाता है । दान कर सकते है लेकिन खासतौर पर नीचे बताये गए दान महादान माने
कहते है जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक तर्पण ,श्राद्ध आदि नहीं कर पाते अथवा जिन लोगो को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी लोगो के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है। शास्त्रीय मान्यता है कि सर्व पितृ दोष अमावस्या अथवा महालया को पितरों के निमित तर्पण, श्राद्ध, एवं दान करने से पितृ अपने वंशजो से अत्यंत प्रसन्न रहते है और उसके जीवन में कोई भी संकट किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है ।
पितृ पक्ष के अंतिम दिन अर्थात सर्व पितृ दोष अमावस्या के दिन में किसी भी समय,स्टील के लोटे में, दूध ,पानी,काले और सफ़ेद तिल एवं जौ मिला ले, इसके साथ कोई भी सफ़ेद मिठाई ,एक नारियल, कुछ सिक्के,तथा एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्व प्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दे, तथा इस मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें, ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः
इसके पश्चात निम्न मंत्र को पड़ते हुए पीपल पर जनेऊ अर्पित करे ।
ॐ प्रथम पितृ नारायणाय नमः
इसके पश्चात पीपल वृक्ष के नीचे मिठाई, दक्षिणा तथा नारियल रखकर दो अगरबत्ती जलाकर निम्न मंत्र को पड़ते हुए सात बार परिक्रमा करे ।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अंत में भगवान विष्णु से प्रार्थना करे कि "मुझ पर और मेरे पूरे वंश पर आपकी तथा हमारे पित्रो की सदैव कृपा बनी रहे "। इस क्रिया से जातक को पित्रो की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में अस्थिरताएँ नहीं आती है तथा जीवन में सभी क्षेत्रों में मनवाँछित सफलता प्राप्त होती है. इसलिए यह प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए ।
1. अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
2. इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है।
3. पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
4. शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
5. सोमवार प्रात:काल में स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
6. प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृदोष का शमन होता है।
7. कुंडली में पितृदोष का होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।
8. ब्राह्मणों को प्रतीकात्मक गोदान, गर्मी में पानी पिलाने के लिए कुंए खुदवाएं या राहगीरों को शीतल जल पिलाने से भी पितृदोष कासे छुटकारा मिलता है
9. पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
10. पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।